दुबई क्यों गए हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ?

narendra modi in dubai

PM Narendra Modi: अभी आपको बता दें कि भारत (india) के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी (narendra modi) दुबई गए हुए हैं उन्होंने वहां पर दुबई के एक समाचार पत्र को इंटरव्यू दिया और उसमें बताया कि जलवायु परिवर्तन के बीच स्थिति बेहतर करने के लिए भारत( India)को फसल पद्धति में बदलब करने की जरूरत है।जिसमें दशकों प्रयास करना पड़ेगा। उत्सर्जन कटौती को संतुलित करने के कदम उठाने पर कृषि क्षेत्र पर निर्भर आजीविका प्रभावित होगी। भारत( India) में बिजली 70% कोयला से उत्पादित होती है इस बात को ध्यान में रखना होगा।

बता दें कि भारत(india) में जलवायु संकट बढ़ता ही जा रहा है और इससे निपटने के लिए जो कदम उठाए जा रहे हैं उनकी रफ्तार अभी धीमी है। इसी चुनौती के बीच दुबई में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन शिखर वार्ता (COP28) काफी महत्वपूर्ण है। 30 नवंबर से लेकर 12 दिसंबर तक चलने वाली यह शिखर वार्ता दुनिया में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए जितने धन की जरूरत है उतना उपलब्ध हो पाएगा या नहीं। यह 2020 तक विकासशील देशों को 100 अरब डॉलर प्रतिवर्ष सहायता मुहैया कराई जानी थी लेकिन यह कभी हो नहीं पाया।

यह बैठक क्यों और कब होती है ?

Cop 28 संयुक्त राष्ट्र की जलवायु के मुद्दों पर होने वाली है 28 भी बैठक है। और यह बैठक हर साल होती है इस बैठक में जलवायु परिवर्तन पर यह एकमात्र मंच है जिस पर संयुक्त रूप से बहुपक्षीय निर्णय लेने का एकमा मंच है। इसमें दुनिया की हर देश की लगभग पूर्ण सदस्यता है cop 28 मैं होने वाली बैठक के लिए पीएम नरेंद्र मोदी जी ( PM Narendra Modi) दुबई (Dubai) पहुंच चुके हैं।

एक विकासशील देश होने के नाते कॉप 28 में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण रहने वाली है। भारत (India) दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन चुका है और दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी यही निवास करती है भारत( india) को कॉप 28 में बैठक के दौरान जलवायु परिवर्तन पर एक स्पष्ट रोडमैप की उम्मीद है।

चलिए जानते हैं क्या है भारत का प्लान ?

वार्ता में मीथेन उत्सर्जन पर लम्बी चर्चा होने की उम्मीद है। खासकर चीन के अपनी 2035 की जलवायु योजना में इसे संभावित ग्रीनहाउस गैस के रूप में शामिल करने की प्रतिबद्धता दोहराई है। मीथेन दूसरी सबसे प्रमुख ग्रीन हाउस गैस मानी जा रही है।जिसमें ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने में कार्बन डाई ऑक्साइड की तुलना में अधिक खतरनाक क्षमता है। हालांकि जानकारों का मानना है कि इसका भारत पर उल्लेखनीय असर नहीं पड़ेगा क्योंकि भारत पहले से ही कृषि केंद्रित उन उपायों को लागू कर रहा है जो लाभकारी है।

ईयू और अमेरिका ने संयुक्त रूप से 2020 के स्तर की तुलना में 2030 तक मिथेन उत्सर्जन को दुनिया भर में 30% काम करने के लिए 2021 में वैश्विक मीथेन संकल्प शुरू किया था। लगभग 150 देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं। लेकिन चीन रूस और भारत प्रमुख उत्सर्जनों को में से हैं जिसका अभी इसमें शामिल होना बाकी है इस महीने के प्रारंभ में दुनिया के शीर्ष दो कार्बन उत्सर्जक देशों अमेरिका और चीन ने ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए अपनी 2035 की राष्ट्रीय योजनाओं में मीथेन को शामिल करने का वादा किया था।

भारत की क्या रहेगी योजना ?

भारत वर्तमान में फसलों के विविधीकरण पर ध्यान दे रहा है और धान की वजह मोटे अनाज की उत्पादन कर रहा है जिससे मीथेन के उत्सर्जन में कमी लाने में सहायता मिल सकती है। भारत हर बूंद अधिक सफल नामक योजना के माध्यम से जन संरक्षण के लिए ध्यान केंद्रित कर रहा है। साथी भारत में जैविक उड़िया को बढ़ाने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया गया है।

कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में सैकड़ो हजारों वर्ष तक बनी रहती है अगर इसका उत्सर्जन तुरंत भी काम कर दिया जाए तो भी इसका जलवायु पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसके विपरीत मीथेन का वायुमंडल में जीप कल 12 वर्ष का ही होता है लेकिन यह बहुत अधिक शक्तिशाली ग्रीन हाउस गैस है जो वायुमंडल में मौजूद रहते ही बहुत ज्यादा ऊर्जा अवशोषित करती है संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2030 तक मानव-जनित मीथेन उत्सर्जन को 45 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। इस कमी से 2045 तक ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) में लगभग 0.3 डिग्री सेल्सियस की कमी हो सकती है।

 

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